Raksha Bandhan क्यों मनाया जाता है? जानिए इसका महत्व और मुहूर्त

Raksha Bandhan (Rakhi) हिंदू धर्म का एक प्रमुख त्योहार है जिसे पूरे भारत में धूमधाम से मनाया जाता है। इस पर्व को Rakhi पर्व भी कहा जाता है। आज इस लेख में हम इस अनमोल पर्व के बारे में जानेंगे।

Raksha Bandhan क्यों मनाया जाता है



Raksha Bandhan का यह पर्व श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। इस दिन का माहौल पूरे भारत में देखने लायक होता है और हो भी क्यों न, भाइयों और बहनों के लिए बनाया गया यह खास दिन है।

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Raksha Bandhan का पर्व भाई-बहन के निस्वार्थ प्रेम का बंधन है। Raksha Bandhan का पर्व वर्षों से मनाया जाता रहा है और आज भी भाई-बहन का यह पर्व उसी प्रेम से मनाया जाता है। बहन हाथ में Rakhi बांधकर भाई की रक्षा की कामना करती है। हिंदू धर्म में इस पर्व का विशेष महत्व माना जाता है।

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Raksha Bandhan की एक मिथक कहानी है

Raksha Bandhan कब है?

साल 2021 में Raksha Bandhan 22 अगस्त को मनाया जाएगा। Raksha Bandhan का पर्व श्रावण मास की पूनम के दिन मनाया जाता है और पूनम 22 अगस्त को है।

ऐसे मनाएं Raksha Bandhan

Raksha Bandhan के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान कर साफ कपड़े पहन लें। बाद में घर की सफाई करें। पूजा की थाली तैयार करें जिसमें कंकू चावल का दीपक और फूल रखें। भाई को सामने बैठाकर उसके माथे पर तिलक करें, चावल लगाएं, आरती उतारें और Rakhi को भाई की कलाई पर बांधकर उसकी रक्षा की कामना करें। Rakhi को बांधने के बाद अपने भाई के मुंह को मिठाई से मीठा करें।

Raksha Bandhan का मुहूर्त

पूर्णिमा प्रारंभ तिथि: 21 अगस्त 2021, शाम 07 बजे
पूर्णिमा समाप्ति तिथि: 22 अगस्त 2021 से शाम 05.31 बजे तक
शुभ मुहूर्त: सुबह 06:15 से शाम 05.31 बजे तक
Raksha Bandhan का शुभ मुहूर्त: दोपहर 01:42 बजे से शाम 04:18 बजे तक
Raksha Bandhan की अवधि: 11 घंटे 16 मिनट

Raksha Bandhan क्यों मनाया जाता है

पौराणिक कथाओं के अनुसार, राजसूय यज्ञ के दौरान भगवान कृष्ण को द्वापदी ने रक्षा के रूप में अपने पलवे से एक कपड़ा फाड़कर बांध दिया था, जिसके बाद Raksha Bandhan शुरू हुआ। Raksha Bandhan के दिन से ही पढ़ाई शुरू करना शुभ माना जाता है।

1. इंद्रदेव की कहानी :

भविष्यत् पुराण के अनुसार दैत्यों और देवताओं के मध्य होने वाले एक युद्ध में भगवान इंद्र को एक असुर राजा, राजा बलि ने हरा दिया था. इस समय इंद्र की पत्नी सची ने भगवान विष्णु से मदद माँगी. भगवान विष्णु ने सची को सूती धागे से एक हाथ में पहने जाने वाला वयल बना कर दिया. इस वलय को भगवान विष्णु ने पवित्र वलय कहा. सची ने इस धागे को इंद्र की कलाई में बाँध दिया तथा इंद्र की सुरक्षा और सफलता की कामना की. इसके बाद अगले युद्द में इंद्र बलि नामक असुर को हारने में सफ़ल हुए और पुनः अमरावती पर अपना अधिकार कर लिया. यहाँ से इस पवित्र धागे का प्रचलन आरम्भ हुआ. इसके बाद युद्द में जाने के पहले अपने पति को औरतें यह धागा बांधती थीं. इस तरह यह त्योहार सिर्फ भाइयों बहनों तक ही सीमित नहीं रह गया.

2. राजा बलि और माँ लक्ष्मी का कहानी:

भगवत पुराण और विष्णु पुराण के आधार पर यह माना जाता है कि जब भगवान विष्णु ने राजा बलि को हरा कर तीनों लोकों पर अधिकार कर लिया, तो बलि ने भगवान विष्णु से उनके महल में रहने का आग्राह किया. भगवान विष्णु इस आग्रह को मान गये. हालाँकि भगवान विष्णु की पत्नी लक्ष्मी को भगवान विष्णु और बलि की मित्रता अच्छी नहीं लग रही थी, अतः उन्होंने भगवान विष्णु के साथ वैकुण्ठ जाने का निश्चय किया. इसके बाद माँ लक्ष्मी ने बलि को रक्षा धागा बाँध कर भाई बना लिया. इस पर बलि ने लक्ष्मी से मनचाहा उपहार मांगने के लिए कहा. इस पर माँ लक्ष्मी ने राजा बलि से कहा कि वह भगवान विष्णु को इस वचन से मुक्त करे कि भगवान विष्णु उसके महल मे रहेंगे. बलि ने ये बात मान ली और साथ ही माँ लक्ष्मी को अपनी बहन के रूप में भी स्वीकारा.

3. रानी कर्णावती और सम्राट हुमायूँ

रानी कर्णावती और सम्राट हुमायूँ की कहानी का कुछ अलग ही महत्व है. ये उस समय की बात है जब राजपूतों को मुस्लमान राजाओं से युद्ध करना पड़ रहा था अपनी राज्य को बचाने के लिए. राखी उस समय भी प्रचलित थी जिसमें भाई अपने बहनों की रक्षा करता है. उस समय चितोर की रानी कर्णावती हुआ करती थी. वो एक विधवा रानी थी.

और ऐसे में गुजरात के सुल्तान बहादुर साह ने उनपर हमला कर दिया. ऐसे में रानी अपने राज्य को बचा सकने में असमर्थ होने लगी. इसपर उन्होंने एक राखी सम्राट हुमायूँ को भेजा उनकी रक्षा करने के लिए. और हुमायूँ ने भी अपनी बहन की रक्षा के हेतु अपनी एक सेना की टुकड़ी चित्तोर भेज दिया. जिससे बाद में बहादुर साह के सेना को पीछे हटना पड़ा था.

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Rakhi बांधते समय इस मंत्र का जाप करें

येन बद्दो बली: राजा दानवेंद्र महाबल |
दस तवम्पी बदनामी रक्षा मा चल मा चल | |

इस मंत्र के शाब्दिक अर्थ में बहन रक्षासूत्र बांधते हुए कहती हैं कि मैं तुम्हें उसी धागे से बांधती हूं जिससे महान पराक्रमी राजा बलि को बांधा गया था। हे रक्षा (Rakhi) तुम दृढ़ रहो। अपने आप को बचाने के अपने संकल्प से कभी विचलित न हों। इसी इच्छा से बहन Rakhi को भाई की कलाई पर बांधती है।
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